एसडीएम पेशकार निलंबित आरोप लापरवाही तीन मुकदमों में अनियमितता

एसडीएम पेशकार निलंबित आरोप लापरवाही से तीन मुकदमों में अनियमितता

बलिया जिले में एक सरकारी कर्मचारी की लापरवाही की घटना सामने आई है, जिसे लेकर जांच के बाद उस पर कड़ी कार्रवाई की गई है। यह मामला एक ही व्यक्ति के एक ही प्रार्थना पत्र पर तीन मुकदमे दर्ज करने, उन मुकदमों में आदेश पारित करने, और उन आदेशों का सही तरीके से अंकन नहीं करने से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, पेशकार ने निर्धारित तिथि से पहले ही आदेश पारित कर दिया, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में अनियमितता और लापरवाही की आया । इस संदर्भ में एसडीएम बलिया के पेशकार नीरज श्रीवास्तव को दोषी पाया गया है और उन्हें तत्काल निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा, उन्हें सदर तहसील के संग्रह अनुभाग से संबद्ध किया गया है।

इस मामले की जाँच अपर जिलाधिकारी नमामि गंगे द्वारा की गई, जिन्होंने इसे पूरी तरह से गंभीरता से लिया और उचित कदम उठाए। जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह ने भी इस मामले की पुष्टि की और बताया कि यह घटना जनसुनवाई के दौरान सामने आई, जब एक शिकायतकर्ता ने इसकी शिकायत की थी।

घटना की शुरुआत और शिकायत

यह मामला 1 अगस्त को जनसुनवाई के दौरान सामने आया। उस दिन रवि मिश्र, जो बलिया जिले के सुरेमनपुर पोस्ट रघुनाथपुर के निवासी हैं, ने एसडीएम कार्यालय में शिकायती पत्र दिया। शिकायती पत्र में उन्होंने बताया कि उनके राजस्व वाद “मुक्तेश्वर बनाम परमानन्द चौबे” को उप जिलाधिकारी सदर के न्यायालय में आठ महीने से लंबित रखा गया है और उसका निस्तारण नहीं किया जा रहा है। इस वाद के लंबित होने के कारण उन्होंने कई बार संबंधित अधिकारियों से इस मामले में कार्रवाई की मांग की, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

रवि मिश्र ने यह भी बताया कि 31 जुलाई को न्यायालय में सुनवाई की तिथि थी, लेकिन उस दिन भी कोई सुनवाई नहीं की गई। उनके मुताबिक, न्यायालय में इस वाद को बार-बार निरस्त किया गया और फिर से नवीनीकरण कर लिया गया, ताकि किसी भी तरह से इस वाद की प्राचीनता किसी को दिखाई न दे। इस स्थिति में रवि मिश्र ने मजबूरी में इस मामले की शिकायत उच्च अधिकारियों से की।

जांच प्रक्रिया और उसके परिणाम

रवि मिश्र की शिकायत के बाद जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस पर जांच कराने का आदेश दिया। जांच के लिए अपर जिलाधिकारी नमामि गंगे को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए।

जांच रिपोर्ट में यह पाया गया कि 7 जनवरी को “मुक्तेश्वर मिश्र बनाम परमानन्द चौबे” का वाद न्यायालय में दर्ज हुआ था, लेकिन 22 अप्रैल को नक्शा छोटा होने के कारण इसे निरस्त कर दिया गया। फिर 16 अप्रैल को इसी वाद को पुनः दर्ज किया गया, लेकिन 9 मई को भी नक्शा छोटा होने के कारण इसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद, इस मामले को पुनः दर्ज कर दिया गया और 6 जून 2025 को इस मामले में एक नया वाद दर्ज किया गया।

सबसे चिंताजनक बात यह था कि इस वाद में 20 अगस्त को अंतिम आदेश पारित किया गया था, लेकिन पेशकार ने इसे जल्दी निपटाने के लिए आदेश पारित कर दिया और उसे ऑर्डर शीट में अंकित नहीं किया। जांच में यह भी सामने आया कि पेशकार के पास आरसीसीएमएस पोर्टल का पासवर्ड था, जिसके माध्यम से उन्होंने अपनी लापरवाही और अनियमितताएं कीं।

इस स्थिति को देखते हुए यह साफ हो गया कि पेशकार नीरज श्रीवास्तव ने अपनी जिम्मेदारी निभाने में भारी लापरवाही बरती। उन्होंने मुकदमों की सही तरीके से निगरानी नहीं की और आदेशों का सही तरीके से अंकन भी नहीं किया, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में बाधाएं आईं और वाद की प्राचीनता को प्रभावित किया गया।

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