बलिया जिले में पर्यावरण संरक्षण और वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए प्रशासन ने गंभीर कदम उठाने की योजना बनाई है। प्रशासन ने अब यह फैसला लिया है कि पराली जलाने पर रोक लगाई जाए और जलाने वाले किसानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह कदम बढ़ते वायु प्रदूषण और खेतों में पराली जलाने से होने वाली पर्यावरणीय हानियों को रोकने के लिए उठाया गया है। इसके तहत, प्रशासन ने फसल कटाई के बाद बचा हुआ भूसा जलाने वाले किसानों पर जुर्माना लगाने का निर्णय लिया है, जिससे इस समस्या को काबू किया जा सके और पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखा जा सके।
उप कृषि निदेशक मनीष कुमार सिंह
उप कृषि निदेशक मनीष कुमार सिंह ने बताया कि शासन स्तर से जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि कोई किसान अपने खेतों में फसल कटाई के बाद बचा हुआ भूसा जलाता है तो उसे राशि का जुर्माना देना होगा। यह जुर्माना उस किसान की खेतों की भूमि के आकार के आधार पर तय किया जाएगा। कृषि विभाग की ओर से जारी निर्देशों में कहा गया है कि दो एकड़ से कम भूमि वाले किसानों पर ₹5,000 का जुर्माना होगा। इसी तरह, पाँच एकड़ तक की भूमि वाले किसानों पर ₹10,000 का जुर्माना और पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले किसानों पर ₹30,000 प्रति घटना का जुर्माना तय किया गया है।
प्रशासन ने वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या देखते हुए उठाया कदम
यह कदम प्रशासन ने वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या को ध्यान में रखते हुए उठाया है। धान की कटाई के बाद खेतों में जलाए जाने वाले फसल कटाई के बाद बचा हुआ भूसा से वातावरण में भारी मात्रा में धुआं फैलता है, जिससे हवा की गुणवत्ता खराब होती है और प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप, स्वास्थ्य समस्याएं, विशेषकर सांस की बीमारियां, बढ़ती हैं और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अतः प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया है कि किसान फसल कटाई के बाद बचा हुआ भूसा जलाने के बजाय फसल अवशेष का सही तरीके से प्रबंधन करें। इसके लिए कई तकनीकी उपायों और उपकरणों का उपयोग करने की सलाह दी गई है, ताकि किसानों को फसल कटाई के बाद बचा हुआ (पाराली) भूसा जलाने से रोका जा सके और पर्यावरण को नुकसान न हो।
बलिया मे कृषि अवशेष प्रबंधन के उपाय:
बलिया प्रशासन ने यह स्पष्ट किया है कि धान की कटाई के बाद किसानों को फसल अवशेष का उचित प्रबंधन करना अनिवार्य है। इसके लिए विभिन्न यांत्रिक उपकरणों और तकनीकों का उपयोग किया जाएगा। उप कृषि निदेशक मनीष कुमार सिंह ने बताया कि सभी कम्बाइन हार्वेस्टरों में सुपर एसएमएस (Super SMS) उपकरण लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। यह उपकरण फसल अवशेष को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है, जिससे किसानों को इन अवशेषों को जलाने की जरूरत नहीं पड़ती और वह इन्हें उचित तरीके से प्रबंधित कर सकते हैं।
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इसके अलावा, किसानों को यह भी निर्देश दिए गए हैं कि वे सुपर सीडर, हैपी सीडर, मल्चर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, श्रेडर, रोटरी स्लेशर, जिरोटिल सीड कम फर्टी ड्रिल जैसे यंत्रों का इस्तेमाल करें। इन उपकरणों का उपयोग कर किसान फसल अवशेष को खेतों में ही प्रबंधित कर सकते हैं, ताकि उसे जलाने की आवश्यकता न पड़े। फसल अवशेष का सही तरीके से प्रबंधन करने से न केवल पर्यावरण को लाभ मिलेगा, बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी और कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी।
अगर किसान पराली को जलाने के बजाय क्राप रीपर, बेलर या रेक मशीन से अवशेष को एकत्र करते हैं, तो यह अवशेष पशु चारे, कम्पोस्ट खाद या बायो-कोल बनाने में उपयोगी हो सकते हैं। इस प्रकार, किसानों को पराली जलाने के बजाय इन अवशेषों का उपयोग करने के लाभों के बारे में बताया गया है।
सार्वजनिक जागरूकता और प्रशासनिक निगरानी:
प्रशासन ने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए ग्रामीण इलाकों में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती की है। राजस्व ग्राम के लेखपालों और थाना प्रभारियों को अपने-अपने क्षेत्रों में फसल कटाई के बाद बचा हुआ भूसा जलाने की घटनाओं की निगरानी करने और उन्हें रोकने की जिम्मेदारी दी गई है। इसके साथ ही, जनपद स्तर पर एडीएम (वित्त एवं राजस्व) और तहसील स्तर पर एसडीएम की अध्यक्षता में समितियां गठित की गई हैं, जो कटाई से लेकर रबी की बुवाई तक पराली प्रबंधन की निगरानी करेंगी।
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इसके अलावा, एसडीएम के प्रवर्तन में गठित सचल दस्ता (फ्लाइंग स्क्वॉड) को यह अधिकार दिया गया है कि वह फसल कटाई के बाद बचा हुआ भूसा जलाने की सूचना मिलते ही मौके पर पहुंचकर संबंधित किसान से जुर्माना वसूलने के साथ ही आवश्यक कार्रवाई कर सके। इस टीम को किसी भी घटना पर तत्काल प्रतिक्रिया देने का अधिकार है।
कंबाइन हार्वेस्टर की निगरानी:
कृषि विभाग और ग्राम्य विकास विभाग के कर्मचारी प्रत्येक कम्बाइन हार्वेस्टर की निगरानी करेंगे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी हार्वेस्टर बिना सुपर एसएमएस या अन्य फसल अवशेष प्रबंधन उपकरण के काम नहीं कर रहा है। यदि किसी मशीन में यह उपकरण नहीं पाया जाता है, तो उसे तुरंत सीज कर दिया जाएगा और उस मशीन के मालिक से उपकरण लगवाए जाने के बाद ही उसे छोड़ने की अनुमति दी जाएगी।
किसानों से अपील:
उप कृषि निदेशक मनीष कुमार सिंह ने किसानों से अपील की है कि वे पर्यावरण की सुरक्षा के लिए फसल कटाई के बाद बचा हुआ भूसा जलाने की बजाय फसल अवशेष का सही तरीके से प्रबंधन करें। उन्होंने यह भी कहा कि, “किसान भाई अपनी भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पराली जलाने की बजाय वैज्ञानिक तरीके अपनाएं। इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि उनकी कृषि उत्पादकता भी बढ़ेगी और वे अधिक लाभ कमा सकेंगे।”
किसानों को यह समझने की जरूरत है कि फसल कटाई के बाद बचा हुआ भूसा जलाने से उनके खेतों की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, और लंबे समय में इससे उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। फसल कटाई के बाद बचा हुआ भूसा जलाने की बजाय उसे खाद में बदलने से खेतों की मृदा की गुणवत्ता बढ़ेगी और अगले फसल मौसम में बेहतर पैदावार मिलेगी।
रिपोर्ट: अनीश , (स्थानीय रिपोर्टर, Ballia)
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