भारत में एक बार फिर से स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत में बिक रहे तीन कफ सिरप – Coldrif, Respifresh TR, और ReLif – को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है। WHO के अनुसार, इन सिरपों का सेवन स्वास्थ्य के लिए जानलेवा हो सकता है। यह चेतावनी विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि भारत में दवाओं की गुणवत्ता पर पहले ही कई सवाल उठ चुके हैं।
इसके अलावा, दिवाली के आसपास नकली मावा और पनीर जैसी खाद्य सामग्री के कारण भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ने का अनुमान है। ऐसे में यह मामला और भी गंभीर हो जाता है। भारत में स्वास्थ्य की दिशा में उठाए गए कदम अक्सर चुनावी मुद्दे बनकर रह जाते हैं, जबकि ज़रूरत इस बात की है कि इन मुद्दों पर समय रहते कार्रवाई हो।
कफ सिरप पर WHO की चेतावनी: क्या इसका कोई असर होगा?
WHO ने जिन तीन कफ सिरपों की चेतावनी दी है, उनका सेवन बड़ों और बच्चों दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इन दवाओं में कथित तौर पर खतरनाक रसायन पाए गए हैं, जो न केवल शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि मौत का कारण भी बन सकते हैं। WHO ने इन दवाओं को लेकर भारत सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की है और बताया कि इन सिरपों का सेवन करने से मरीजों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
यह सिरप, जो आमतौर पर खांसी और सर्दी के इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, कई बार बाजार में नकली या खराब गुणवत्ता वाले रूप में उपलब्ध हो जाते हैं। इन दवाओं में रसायनों की अधिक मात्रा या विषाक्त तत्व पाए जाने के कारण मरीजों की स्थिति बिगड़ सकती है। सवाल यह है कि जब WHO ने इतने गंभीर तरीके से चेतावनी दी है, तो सरकार और अन्य संबंधित एजेंसियां क्या कदम उठा रही हैं?
नकली और निम्न गुणवत्ता वाली दवाइयों का खतरा
भारत में दवाइयों की गुणवत्ता पर पहले भी सवाल उठ चुके हैं। नकली और घटिया गुणवत्ता वाली दवाइयों का कारोबार देश में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय दवा नियामक एजेंसियों के पास इन दवाओं के बारे में सख्त नियंत्रण की व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन तथ्य यह है कि कई बार यह दवाइयां बाजार में आ जाती हैं, और उनके सेवन से मरीजों की हालत खराब हो जाती है।
WHO की यह चेतावनी एक संकेत है कि भारत में दवाइयों के परीक्षण और निगरानी की प्रक्रिया में और सुधार की आवश्यकता है। कई बार यह देखा गया है कि जो दवाइयां देश में बिक रही हैं, उनमें उनकी गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए जाते हैं। जब तक किसी बड़े हादसे का सामना नहीं करना पड़ता, तब तक इन मुद्दों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती।
क्या दवाओं की सख्त जांच होनी चाहिए?
भारत में हर साल हजारों दवाइयों को बाजार में उतारा जाता है, लेकिन क्या यह दवाइयां उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं? या फिर बाजार में दवाइयों की गुणवत्ता की जांच को लेकर कोई गड़बड़ी है, जो मरीजों के लिए खतरे का कारण बन सकती है? WHO की चेतावनी इस बात का संकेत देती है कि भारत में दवाइयों की गुणवत्ता की जांच को और अधिक सख्त करने की आवश्यकता है।
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यह सच है कि भारत में हर दवा की जांच पर सवाल उठाने का कोई तंत्र सही तरीके से काम नहीं करता। और जब तक किसी की मौत नहीं होती, तब तक संबंधित एजेंसियां कड़ी कार्रवाई नहीं करतीं। अब सवाल यह है कि क्या हमें हर दवा को बाजार में उतारे जाने से पहले पूरी तरह से परीक्षण और निगरानी की प्रक्रिया से गुजरने देना चाहिए? क्या हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम लागू नहीं करने चाहिए कि दवाइयों का सेवन लोगों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हो?
क्या सरकार को कदम उठाने चाहिए?
भारत सरकार और अन्य संबंधित एजेंसियों से यह अपील की जाती है कि वे इस मामले पर तत्काल कार्रवाई करें। अगर ऐसी दवाएं बाजार में बिक रही हैं, जो जानलेवा साबित हो सकती हैं, तो उन्हें तुरंत बाजार से हटा लिया जाना चाहिए। इसके अलावा, सरकार को चाहिए कि वह दवाइयों के परीक्षण और निगरानी की प्रक्रिया को और अधिक कड़ा करे और यह सुनिश्चित करे कि जनता को किसी भी प्रकार की जहर जैसी दवाइयां नहीं दी जा रही हैं।
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इसके अलावा, दवाइयों की गुणवत्ता पर हर साल रिपोर्ट जारी की जानी चाहिए, जिससे जनता को यह पता चले कि बाजार में बिक रही दवाइयां उनकी सेहत के लिए सुरक्षित हैं या नहीं। भारत में नागरिकों को यह जानने का अधिकार होना चाहिए कि वे जो दवा ले रहे हैं, वह उनकी सेहत को लाभ पहुंचा रही है या उन्हें नुकसान पहुंचा रही है।
दिवाली के समय बढ़ने वाली स्वास्थ्य समस्याएं
दिवाली के आसपास खाद्य सुरक्षा के मुद्दे भी उभरते हैं। इस समय नकली मावा, पनीर और अन्य खाद्य सामग्री का कारोबार बढ़ जाता है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है। ये खाद्य सामग्री गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं, जैसे कि पेट की बीमारियां, विषाक्तता, और यहां तक कि जानलेवा परिणाम भी हो सकते हैं।
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इससे जुड़ी अन्य चिंताएं भी हैं, जैसे कि खाद्य सुरक्षा और मावा-पनीर की गुणवत्ता। क्या इसे लेकर भी सरकार और संबंधित एजेंसियों द्वारा सख्त कदम उठाए जा रहे हैं? अगर नहीं, तो इसका असर दिवाली के बाद देखने को मिल सकता है, जब लोग इन नकली और खतरनाक खाद्य सामग्री का सेवन करेंगे।
बलिया न्यूज के साथ अभिषेक
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