उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सरयां गुलाब राय गांव में 23 मार्च 2025 को एक ऐसी घटना घटी, जिसने पूरे समाज को हिलाकर रख दिया। एक 21 वर्षीय युवती, पूजा चौहान का शव जामुन के पेड़ से लटकते हुए मिला था। शुरू में पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला बताया, लेकिन परिवारवालों और समाज के दबाव ने इसे हत्या के रूप में पुनः जांचने की आदेश दे दिया गया । पांच महीने बाद इस मुद्दे ने फिर से तूल पकड़ा, जब उच्चस्तरीय जांच के लिए एक एसआईटी (Special Investigation Team) का गठन किया गया और लखनऊ से आई फॉरेंसिक टीम ने घटनास्थल पर पुनः घटनाक्रम को रीक्रिएट किया।
घटना का शुरुवात
23 मार्च 2025 को सरयां गुलाब राय गांव में पूजा चौहान का शव जामुन के पेड़ से लटकता हुआ मिला। शव के हाथ पीछे की ओर बंधे हुए थे, जो कि एक लगभग ऐसे कोई आत्महत्या नहीं कर सकता । आत्महत्या के मामलों में आमतौर पर शव के हाथ नहीं बंधे होते हैं। यही कारण था कि पूजा के परिवार ने पुलिस द्वारा आत्महत्या का बताए जाने कए बाद इस मामले को हत्या मानते हुए न्याय की मांग की।
शुरुआत में पुलिस ने इसे आत्महत्या माना और तीन लोगों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज किया। लेकिन पूजा के परिवार का दावा था कि उनकी बेटी को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का शिकार बनाया गया था, जिसके कारण उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया। इस कारण परिवार ने उच्च स्तरीय जांच की मांग की, और एक बार फिर से मामला सुर्खियों में आ गया।
एसआईटी और फॉरेंसिक जांच
एसआईटी टीम के गठन के बाद इस मामले की जांच को नई दिशा दी गई। एसआईटी ने लखनऊ से एक फॉरेंसिक टीम को घटनास्थल पर भेजा, जिन्होंने पूजा चौहान के शव की स्थिति को फिर से रीक्रिएट किया। इस प्रकार की कार्रवाई का उद्देश्य यह था कि घटना के उस क्षण की स्थिति को फिर से समझा जाए और यह पता लगाया जाए कि क्या यह घटना आत्महत्या थी या हत्या।
फॉरेंसिक टीम ने विधि विज्ञान प्रयोगशाला, रामनगर के नेतृत्व में डेमो किया, जिसमें पूजा चौहान के शव की स्थिति को ठीक उसी प्रकार से रखा गया, जैसा कि शव जामुन के पेड़ से लटकते हुए मिला था। इस डेमो के बाद, एक रिपोर्ट तैयार की गई, जिसे लखनऊ मेडिको-लीगल टीम को भेजा जाएगा। इस जांच के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि घटना के असल कारण क्या थे और क्या पुलिस ने मामले की सही तरीके से जांच की थी।
मानसिक और सामाजिक दृष्टिकोण
पूजा चौहान के मामले ने न केवल एक परिवार को झकझोरा, बल्कि पूरे समाज को एक गंभीर सवाल पर विचार करने के लिए मजबूर किया। पूजा के परिवार का आरोप था कि उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा था और उसके बाद हत्या की गई। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया कि क्या समाज महिलाओं को सुरक्षा देने में नाकाम है, और क्या कानून महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में प्रभावी रूप से कार्रवाई कर रहा है?
समाज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं, और इस घटना ने यह प्रश्न उठाया कि क्या हम इस समस्या को गंभीरता से ले रहे हैं? क्या मानसिक उत्पीड़न, जो महिलाओं को समाज में प्रताड़ित करता है, उसकी रोकथाम के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं? पूजा की मौत ने समाज की संवेदनशीलता को चुनौती दी और इसने यह दर्शाया कि अगर इस तरह की घटनाओं का समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो और भी युवा जीवन इस तरह की प्रताड़ना का शिकार हो सकते हैं।
कानूनी पहलू
इस घटना में कानूनी दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं। पहले, पुलिस ने प्रारंभिक जांच में इसे आत्महत्या मान लिया था, जबकि परिवार का कहना था कि यह हत्या थी। क्या यह पुलिस की लापरवाही थी या क्या यह जानबूझकर आत्महत्या के रूप में दबाने की कोशिश थी? एसआईटी द्वारा की जा रही जांच के बाद यह साफ होगा कि शुरुआती जांच में कोई लापरवाही की गई थी या नहीं।
इसके अलावा, यह भी सवाल उठता है कि जब एक परिवार के सदस्य द्वारा हत्या की आशंका जताई जाती है, तो क्या पुलिस को मामले की गहराई से जांच करनी चाहिए थी? यदि पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया होता, तो शायद यह घटना इतनी लंबी खिंचने की बजाय समय रहते सुलझ सकती थी। यह घटनाएँ यह भी दिखाती हैं कि हमारे कानूनी तंत्र को और अधिक सशक्त और जवाबदेह बनाने की आवश्यकता है, ताकि इस तरह की घटनाओं में कोई सजा से बच न सके और महिलाएं न्याय की उम्मीद में ठगी महसूस न करें।
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