गंगा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, और इस रफ्तार से यदि स्थिति रही, तो 2016 में रिकाॅर्ड स्तर को तोड़ने की संभावना जताई जा रही है। यह बढ़ता जलस्तर तटीय क्षेत्र के लाखों लोगों के लिए खतरे की घंटी साबित हो रहा है। जलस्तर में बढ़ोतरी के कारण नदी के किनारे बसे इलाके में बाढ़ की स्थिति गंभीर हो गई है और प्रशासन ने इसके मद्देनजर अलर्ट जारी किया है। सिंचाई विभाग द्वारा जारी इस अलर्ट में यह कहा गया है कि गंगा नदी के जलस्तर के बढ़ने के कारण 60.390 मीटर तक जलस्तर पहुँचने की आशंका है, जो न केवल जानमाल के नुकसान का कारण बन सकता है, बल्कि लोगों के रोज़मर्रा के जीवन को भी प्रभावित कर सकता है।
कई गांवों में बाढ़ का पानी फैलने के कारण अफरातफरी का माहौल बन गया है। वर्तमान में जिले के 24 गांव पूरी तरह से घीर हो गए हैं। ये गांव जलस्तर की बढ़त के कारण अन्य स्थानों से कट गए हैं और यहाँ के निवासियों के लिए जीवन-यापन करना मुश्किल हो गया है। ऐसे में प्रशासन ने इन क्षेत्रों के लोगों को सतर्क किया है, ताकि वे समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुँच सकें।
क्यों बढ़ा बलिया मे गंगा नदी का पानी
गंगा नदी के जलस्तर में पांचवें दिन बेतहाशा बढ़ने का मुख्य कारण है चंबल नदी से 16 लाख क्यूसेक और माताटीला डैम से 3 लाख क्यूसेक पानी का छोड़ना। यह पानी नदी में आया और इसके परिणामस्वरूप गंगा के जलस्तर में तेजी से वृद्धि हुई। बाढ़ विभाग के अधिकारियों के अनुसार, यह स्थिति बहुत गंभीर हो गई है। धौलपुर राजस्थान के चंबल नदी से लगातार पानी छोड़ने से गंगा नदी के जलस्तर में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है, जो अब तक की सबसे तेज़ वृद्धि मानी जा रही है।
इस बढ़ते जलस्तर से रामगढ़ से लेकर नौरंगा तक के क्षेत्रों में बाढ़ का पानी फैल चुका है। इस क्षेत्र के लोग लगातार अपने घरों को खोने का डर महसूस कर रहे हैं और उन्हें बचाव कार्यों की चिंता सता रही है। इन इलाकों में बाढ़ का पानी गांवों में घुस चुका है, और अब लोग अपनी ज़िंदगी की सुरक्षा के लिए एक जगह से दूसरे जगह जा रहे हैं।
बाढ़ के प्रभावित क्षेत्रों में जनजीवन पर असर
सिंचाई विभाग और प्रशासन के अनुसार, बाढ़ के पानी की वजह से बलिया-बैरिया क्षेत्र के बादिलपुर से लेकर टेंगरही, शतिघाट, भुसौला, नारदरा, चक्की नौरंगा, उदवंत छपरा ,नेम छपरा समेत 70 गांव बुरी तरह से कटान से जूझ रहे हैं। इन गांवों में लगभग 60 हजार की आबादी बसती है और यहां के लोग बाढ़ के कारण अपनी जान-माल के साथ-साथ अपनी जमीन भी खोने की स्थिति में हैं। इन गांवों के लोग अब अपनी ज़िंदगी के लिए मजबूरन राहत शिविरों में आश्रय ले रहे हैं, लेकिन राहत सामग्री की कमी और बाढ़ चौकियों की अव्यवस्था ने उनकी स्थिति को और भी दयनीय बना दिया है।
गंगा के तटीय क्षेत्र के अन्य गांवों जैसे सुघर छपरा, दूबे छपरा, गोपालपुर, उदई छपरा, नौरंगा, भुआल छपरा, चक्की नौरंगा, उपाध्याय टोला, भगवानपुर में बाढ़ का पानी घरों में घुस चुका है। इन इलाकों के लोग अपनी जान बचाने के लिए दिन-रात अपने घरों से बाहर निकलने को मजबूर हैं। यहाँ के लोग अपनी घरों और कृषि भूमि को खोने के भय से परेशान हैं। इनके लिए बाढ़ की यह स्थिति न केवल एक प्राकृतिक आपदा है, बल्कि उनके अस्तित्व का संकट बन चुकी है।
शैक्षिक संस्थान भी बाढ़ से प्रभावित
बाढ़ का पानी फैलने के साथ ही स्थानीय शैक्षिक संस्थान भी इससे बचे नहीं हैं। एक दर्जन से अधिक विद्यालयों में पठन-पाठन बंद हो गया है। छात्रों और शिक्षकों को अस्थायी राहत शिविरों में ठहराया गया है, जिससे शिक्षा की प्रक्रिया भी पूरी तरह से बाधित हो चुकी है। प्रभावित क्षेत्रों के विद्यार्थियों के लिए यह एक गंभीर समस्या बन चुकी है क्योंकि उनका पढ़ाई से जुड़ा पूरा साल संकट में आ गया है।
बाढ़ चौकियों और सहायता कार्यों में लापरवाही
चक्की नौरंगा व दूबे छपरा की बाढ़ चौकियाँ फिलहाल केवल कागजों में ही काम कर रही हैं। असल में इन बाढ़ चौकियों पर कोई भी वास्तविक बचाव कार्य नहीं हो रहा है। लोगों को समय पर सहायता नहीं मिल रही है, और कई इलाकों में नाव की भारी कमी है। प्रशासन ने दावा किया है कि राहत सामग्री भेजी जा रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका असर बहुत कम दिखाई दे रहा है। लोग बाढ़ से बचने के लिए अपने घरों से दूर, सड़कों और ऊंचे स्थानों पर शरण ले रहे हैं।
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