उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में मोंथा तूफान और बेमौसम बारिश ने किसानों को भारी संकट में डाल दिया है। किसानों ने फसलों के नुकसान के लिए सरकारी सहायता और क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए जिलाधिकारी प्रतिनिधि को एक ज्ञापन सौंपा है। इस ज्ञापन में किसान कल्याण सेवा संस्थान के सदस्यों ने जिले में मुआवजा दिलवाने के लिए भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से प्रभावी कदम उठाने की अपील की है।
फसलों का हुआ भारी नुकसान
बलिया जिले में पिछले कुछ महीनों से मौसम के उतार-चढ़ाव ने कृषि उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया है। किसानों का कहना है कि सितंबर माह में लगातार हुई बारिश और मोंथा तूफान ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया। मक्का, धान, आलू, मटर, दलहन-तिलहन जैसी कई फसलें बर्बाद हो गईं। खरीफ की फसलें तो पहले ही बारिश न होने से प्रभावित हो चुकी थीं, लेकिन तूफान और लगातार बारिश ने इन फसलों को पूरी तरह तबाह कर दिया।
मक्के की तैयार फसल, जो किसानों के लिए एक प्रमुख स्रोत थी, वह तूफान और बारिश से पूरी तरह बर्बाद हो गई। पकी हुई धान की फसल और कटी हुई फसलें भी बारिश के कारण डूब गईं और तेज हवाओं के कारण ज़मीन पर गिरकर सड़ने लगीं। यह स्थिति किसानों के लिए बहुत ही कठिन और निराशाजनक है, क्योंकि इन फसलों से ही उनकी जीविका का मुख्य स्रोत था।
रबी फसलों पर भी असर
रबी की फसलें, जिनमें आलू, मटर, दलहन-तिलहन और अन्य सब्जियां शामिल हैं, भी बेमौसम बारिश और तूफान से पूरी तरह नष्ट हो गईं। किसान इस बात से चिंतित हैं कि अब रबी की बुवाई भी प्रभावित हो गई है। जो खेत पहले से तैयार थे, अब उनमें किसी भी फसल की बुवाई करना मुश्किल हो गया है।
इस वर्ष के मौसम के कारण किसानों को जो नुकसान हुआ है, वह न केवल उनकी आजीविका के लिए संकटपूर्ण है, बल्कि इससे पशुचारे और खाद्यान्न की कमी भी हो गई है। किसान इस बात से परेशान हैं कि अब उन्हें अपने पशुओं को चारा कहां से मिलेगा और उनके लिए खाद्यान्न की समस्या कैसे सुलझेगी।
वित्तीय संकट और कर्ज का बोझ
इस प्राकृतिक आपदा ने किसानों के लिए एक और गंभीर संकट खड़ा कर दिया है – उनका वित्तीय संकट। पहले से ही खेती की लागत में वृद्धि और बैंकों से कर्ज लेने के बाद अब फसलों का पूरी तरह से बर्बाद होना किसानों के लिए एक नया आर्थिक संकट लेकर आया है। बैंक कर्ज और अन्य वित्तीय दबाव ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। कई किसानों ने अपनी जमीन तक गिरवी रखी थी, लेकिन अब फसलें नष्ट होने से उनका कर्ज चुकाना और भी मुश्किल हो गया है।
वर्तमान स्थिति में किसानों के लिए कृषि ऋणों की अदायगी एक चुनौती बन गई है। बिना फसल के आमदनी के स्रोत बंद हो गए हैं और ऐसे में वे कर्ज चुकाने के लिए मजबूर हैं, जबकि उनके पास कोई वैकल्पिक उपाय नहीं है।
किसानों के लिए सरकारी मदद की आवश्यकता
किसान कल्याण सेवा संस्थान के सदस्य इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सरकार को किसानों की स्थिति को समझते हुए मुआवजा देना चाहिए। संस्थान के अध्यक्ष अखिलेश सिंह और अन्य सदस्य जैसे धीरेन्द्र कुमार शर्मा, विनोद प्रताप सिंह, अजय कुमार पांडेय, रविशंकर उपाध्याय, हरे राम चौरसिया, सुधांशु राय और गजेंद्र प्रताप सिंह ने जिलाधिकारी प्रतिनिधि को ज्ञापन सौंपते हुए यह मांग की कि सरकार किसानों के कर्ज माफ करे और आपदा प्रबंधन के तहत फसलों का उचित मुआवजा प्रदान करें।
किसान कल्याण सेवा संस्थान के अनुसार, सरकार को इस संकट की गंभीरता को समझते हुए त्वरित राहत प्रदान करनी चाहिए। संस्थान ने यह भी कहा कि यदि सरकार ने इस संकट के समय में किसानों की मदद नहीं की, तो इससे उनकी स्थिति और भी विकट हो सकती है।
मुआवजा के साथ-साथ स्थायी समाधान की आवश्यकता
किसान केवल तात्कालिक राहत नहीं चाहते, बल्कि वे चाहते हैं कि सरकार भविष्य में ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए स्थायी समाधान निकाले। इसके तहत बेहतर जलवायु सूचना प्रणाली, आपदा प्रबंधन योजनाओं का सुधार, और खेती के जोखिमों को कम करने के लिए तकनीकी उपायों पर काम किया जा सकता है।
संस्थान के सदस्य यह भी मानते हैं कि सरकार को किसान बीमा योजना और कृषि विकास योजनाओं को बेहतर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसे नुकसान से बचाव किया जा सके।