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10 साल पुराने मामले में कोर्ट ने परिवहन राज्यमंत्री समेत सात के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी

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10 साल पुराने मामले में कोर्ट ने परिवहन राज्यमंत्री समेत सात के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी

Ballia News: जिले में एक 10 साल पुरानी घटना को लेकर ताज़ा घटनाक्रम सामने आया है, जिसमें न्यायालय ने परिवहन राज्यमंत्री दयाशंकर सिंह समेत सात आरोपितों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया है। यह मामला शहर के मालगोदाम क्षेत्र के पास रोड जाम करने और धारा 144 के उल्लंघन से संबंधित है, जिसमें तत्कालीन जिलाधिकारी के आदेशों की अवहेलना की गई थी। विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट अनिल मिश्रा की अदालत में सुनवाई के दौरान यह वारंट जारी किया गया। मामले में 17 नामजद और अज्ञात 150 व्यक्तियों पर एफआईआर दर्ज की गई थी।

यह घटना 9 सितंबर 2015 की है, जब सदर कोतवाली के तहत शहर के मालगोदाम क्षेत्र में कुछ लोगों ने धारा 144 का उल्लंघन करते हुए सार्वजनिक रास्ता बंद कर दिया था। इस कार्रवाई के खिलाफ तत्कालीन चौकी इंचार्ज ओक्डेनगंज ने एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें 17 नामजद और 150 अज्ञात व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया था। पुलिस ने इस मामले की जांच की और अंततः इसे विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट के कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया।

मामले का पूरी जानकारी

मालगोदाम के पास 2015 में हुई इस घटना को लेकर प्रशासन और पुलिस दोनों के लिए यह एक गंभीर मुद्दा था। जब भी किसी इलाके में धारा 144 लागू होती है, तो इसका उद्देश्य सार्वजनिक शांति और व्यवस्था बनाए रखना होता है। धारा 144 के तहत किसी भी प्रकार का सार्वजनिक सभा या आंदोलन करने की अनुमति नहीं होती है, खासकर जब वह शांति भंग करने की संभावना रखते हों।

इस मामले में भी कुछ लोगों ने मिलकर मालगोदाम क्षेत्र के पास रोड जाम कर दिया था, जिसके कारण आम नागरिकों को आवागमन में भारी समस्या हो रही थी। साथ ही, यह भी आरोप लगाया गया था कि उस समय के जिलाधिकारी के आदेशों की अवहेलना की गई, जिन्होंने इस प्रकार की अव्यवस्था को रोकने के लिए स्पष्ट निर्देश दिए थे।

एफआईआर और पुलिस की जांच

इस मामले में जब तत्कालीन चौकी इंचार्ज ओक्डेनगंज ने धारा 144 का उल्लंघन करते हुए रोड जाम की शिकायत प्राप्त की, तो उन्होंने तत्काल कार्रवाई करते हुए 17 नामजद और 150 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। पुलिस ने जांच शुरू की और आरोपियों को चिन्हित करने का प्रयास किया। हालांकि, इस मामले में आरोपियों के खिलाफ सबूत जुटाना और उन्हें कानून के समक्ष लाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।

फिर भी, पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए इसे उचित तरीके से जांचा। इसके बाद, जांच में आरोपियों की पहचान की गई और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई। हालांकि, कई आरोपियों का नाम इस जांच में सामने आया, लेकिन कुछ लोग गुमनाम रहे।

अदालत का हस्तक्षेप और गैर जमानती वारंट

घटना के बाद, पुलिस ने मामले को अदालत में प्रस्तुत किया, जहां विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट अनिल मिश्रा की कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए परिवहन राज्य मंत्री दयाशंकर सिंह समेत सात आरोपितों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया।

पूर्व आदेश के अनुसार, इन आरोपितों को अदालत में हाजिर होना था, लेकिन जब वे न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए, तो न्यायालय ने उनके खिलाफ पुनः गैर जमानती वारंट जारी कर दिया। न्यायालय ने कोतवाली पुलिस को यह आदेश दिया कि वह इस वारंट का तामिला सुनिश्चित करे और आरोपितों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करके अदालत में पेश करे।

न्यायालय का यह आदेश प्रशासन और पुलिस विभाग दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि यह आदेश न केवल आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अदालत किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या आदेश की अवहेलना को लेकर गंभीर है।

दूसरी अदालत में स्थानांतरण और सुनवाई

जुलाई में, सीजेएम शैलेष कुमार पांडेय के न्यायालय ने मामले की पत्रावली को विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट के कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया। इस निर्णय के बाद, इस मामले की अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को हुई, जहां आरोपितों की अनुपस्थिति को लेकर विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पुनः गैर जमानती वारंट जारी किया।

सुनवाई के दौरान, यह पाया गया कि आरोपितों ने बार-बार अदालत में उपस्थित होने से बचने की कोशिश की थी। न्यायालय ने इस पर सख्त प्रतिक्रिया दी और तय किया कि आरोपितों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी ताकि न्यायिक प्रक्रिया में कोई भी बाधा उत्पन्न न हो।

आगे की प्रक्रिया

अब जबकि गैर जमानती वारंट जारी हो चुका है, पुलिस विभाग की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। कोतवाली पुलिस को आदेश दिया गया है कि वह आरोपितों के खिलाफ तामिला सुनिश्चित करें और उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश करें। इस मामले में अदालत की कार्रवाई यह संकेत देती है कि प्रशासन और न्यायपालिका दोनों ही सार्वजनिक सुरक्षा और शांति व्यवस्था के प्रति संवेदनशील हैं और किसी भी प्रकार की अव्यवस्था को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने के लिए तैयार हैं।

यह भी देखा गया है कि कानून के समक्ष किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह सार्वजनिक पद पर हो या सामान्य नागरिक, समान रूप से उत्तरदायी ठहराया जाता है। इससे यह संदेश जाता है कि बड़े पदों पर बैठे व्यक्तियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी, यदि वे कानून का उल्लंघन करते हैं।

हालांकि, इस मामले में एक बड़ी चुनौती यह भी है कि 150 अज्ञात आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी अभी बाकी है। पुलिस को इस संदर्भ में पर्याप्त जानकारी जुटानी होगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी आरोपितों को गिरफ्तार किया जा सके।

बलिया न्यूज के साथ अभिषेक

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