March 5 2025 उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। जिला अस्पताल में अब वेंटिलेटर और आईसीयू (Intensive Care Unit) की सुविधाएं भी मिलेगी । इससे जिले के नागरिकों को कई प्रकार के गंभीर स्वास्थ्य संकटों से राहत मिल सकेगी, खासकर उन लोगों को, जिन्हें समय पर उचित उपचार के लिए वाराणसी या मऊ जैसे दूर स्थानों पर भेजा जाता था। इस कदम से न केवल गंभीर मरीजों को राहत मिलेगी, बल्कि अस्पताल में उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग भी सुनिश्चित होगा।
स्वास्थ्य विभाग की नई पहल: वेंटिलेटर और आईसीयू की ट्रेनिंग
जिला अस्पताल में वेंटिलेटर और आईसीयू वार्ड के संचालन की दिशा में स्वास्थ्य विभाग ने महत्वपूर्ण पहल की है। चिकित्सकों, स्टाफ नर्सों और लैब टेक्नीशियनों (एलटी) को वेंटिलेटर चलाने और आईसीयू वार्ड के संचालन की ट्रेनिंग दी जा रही है। इसके लिए आजमगढ़ स्थित मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा कर्मियों को प्रशिक्षण देने के लिए भेजा गया है। जिले के डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी इस प्रशिक्षण में भाग ले रहे हैं, ताकि वे इन अत्यावश्यक सामानों और उपकरणों का सही तरीके से उपयोग कर सकें और मरीजों का बेहतर इलाज कर सकें।
आने वाले दिनों में जब यह सुविधाएं चालू हो जाएंगी, तो गंभीर मरीजों को वाराणसी और मऊ जैसे शहरों की ओर रेफर करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इससे मरीजों को रास्ते में हो सकने वाली किसी भी घटना से बचने का मौका मिलेगा, जो अक्सर देखा गया है कि सड़क दुर्घटनाओं या अन्य गंभीर स्थितियों के दौरान मरीजों को समय पर इलाज न मिलने के कारण उनकी मौत हो जाती थी।
बलिया जिले में वेंटिलेटर और आईसीयू की वर्तमान स्थिति
जिला अस्पताल में यह सुविधाएं पहले से मौजूद थीं, लेकिन उनका संचालन ठीक से नहीं हो रहा था। कोविड काल के दौरान कई अस्पतालों में वेंटिलेटर और आईसीयू की मशीनें रखी गई थीं, लेकिन उनका उपयोग नहीं हो पा रहा था। जिला अस्पताल की ट्रॉमा सेंटर में 5 वेंटिलेटर मशीनें 10 साल से बेकार पड़ी हैं। इन मशीनों का संचालन नहीं हो पा रहा था, क्योंकि उन्हें चलाने का प्रशिक्षण भी नहीं था। यहां तक कि कोविड महामारी के दौरान इन मशीनों का स्टॉल तक कर दिया गया था और उनकी देखभाल नहीं की गई। इसके परिणामस्वरूप, कई मरीजों को इलाज के लिए अन्य अस्पतालों में रेफर करना पड़ा, जिससे उनकी स्थिति और बिगड़ गई।
आईसीयू का संचालन भी एक चुनौती थी। जिले के अस्पतालों में आईसीयू की कमी थी और इसके संचालन की जानकारी न होने के कारण कई मरीजों को गंभीर स्थिति में होने के बावजूद आवश्यक देखभाल नहीं मिल पाती थी। अब, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा पार्थ सारथी सेन शर्मा के निर्देश पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसके तहत स्वास्थ्यकर्मियों को वेंटिलेटर और आईसीयू के संचालन के बारे में जानकारी दी जा रही है।
कोविड काल और बच्चों के इलाज में कमी
कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान बच्चों के इलाज के लिए जिले में एक 30 बेड का पीकू वार्ड (Pediatric Intensive Care Unit) स्थापित किया गया था। इस वार्ड में 10 वेंटिलेटर युक्त बेड थे। लेकिन वेंटिलेटर के संचालन की जानकारी न होने के कारण इन उपकरणों का सही उपयोग नहीं हो पाया। इसके परिणामस्वरूप, गंभीर बच्चों को उपचार के लिए वाराणसी और मऊ जैसे शहरों में भेजा गया, जिससे उनकी स्थिति और बिगड़ गई।
यदि इन वेंटिलेटरों का सही तरीके से संचालन होता, तो शायद कई बच्चों की जान बचाई जा सकती थी। यही स्थिति अन्य गंभीर मरीजों के साथ भी थी। यदि अस्पताल में वेंटिलेटर और आईसीयू की सुविधा होती, तो समय पर उपचार मिल पाने से बहुत सारी जानें बचाई जा सकती थीं।
जिले की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा
जिला अस्पताल में वेंटिलेटर और आईसीयू की सुविधाएं शुरू होने से न केवल गंभीर मरीजों को राहत मिलेगी, बल्कि जिले की स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। स्वास्थ्य विभाग के प्रयासों से यह सुनिश्चित होगा कि अब मरीजों को तत्काल इलाज मिल सकेगा और उन्हें अन्य शहरों की ओर रेफर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके अलावा, स्वास्थ्यकर्मियों को वेंटिलेटर और आईसीयू के संचालन की ट्रेनिंग मिलने से उनकी कार्यक्षमता में भी सुधार होगा।
अमर उजाला के अनुसार
डॉ. एसके यादव, सीएमएस जिला अस्पताल के अनुसार, “हमारे अस्पताल में वेंटिलेटर और आईसीयू के संचालन की उम्मीदें अब तकरीबन पूरी हो चुकी हैं। स्वास्थ्य विभाग ने इसके लिए जो कदम उठाए हैं, उससे यह साफ है कि अब मरीजों को बेहतर उपचार मिलेगा। आने वाले दिनों में इन सुविधाओं का संचालन शुरू हो जाएगा, और हमारे जिले के लोग भी उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा सकेंगे।”
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