बलिया ज़िले से एक बेहद चौंकाने वाली और गंभीर खबर सामने आई है। यहाँ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित प्रमाण पत्र के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा पकड़ा गया है। आरोप है कि जालसाजों ने डीएम (जिलाधिकारी) के फर्जी हस्ताक्षर का इस्तेमाल करके नकली प्रमाण पत्र बनाए और उनका उपयोग राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) में लाभ उठाने के लिए किया। इस पूरे मामले ने न केवल शिक्षा को हिला कर रख दिया है, और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
कैसे हुआ खुलासा?
जून और जुलाई महीने में कई छात्रों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित प्रमाण पत्र जारी किए गए। पहली नजर में यह प्रमाण पत्र असली लग रहे थे क्योंकि उन पर जिलाधिकारी के हस्ताक्षर मौजूद थे। लेकिन जब इन दस्तावेज़ों की जांच की गई तो पता चला कि ये हस्ताक्षर फर्जी थे। यानी किसी ने बाकायदा डीएम की मुहर और हस्ताक्षर की नकली कॉपी तैयार की और उसका इस्तेमाल कर प्रमाण पत्र जारी कर दिया।
जांच में अब तक कुल 12 प्रमाण पत्रों की पड़ताल की गई है। चौंकाने वाली बात यह रही कि इनमें से 11 प्रमाण पत्र पूरी तरह से फर्जी पाए गए। सिर्फ एक प्रमाण पत्र ही असली था। यह तथ्य सामने आते ही पूरा प्रशासनिक हरकत में आ गया और इस फर्जीवाड़े के पीछे काम कर रहे गिरोह तक पहुँचने की कोशिशें तेज कर दी गईं।
कौन-कौन शामिल हैं?
सूत्रों के मुताबिक, इन फर्जी प्रमाण पत्रों का इस्तेमाल करके 11 छात्रों ने नीट परीक्षा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोटे का लाभ लेने की कोशिश की। इनमें से तीन छात्र तो एक ही गांव — बढ़वलिया — के रहने वाले हैं। बाकी छात्र सदर तहसील के अन्य गांवों जैसे कारो, शाहपुर, फिरोजपुर, पखनपुरा, चितबड़ागांव और नगवागाई से के रहने वाले है ।
यानी इस गिरोह ने सिर्फ इक्का-दुक्का नहीं बल्कि एक संगठित तरीके से अलग-अलग गांवों के छात्रों को जोड़कर फर्जी दस्तावेज़ मुहैया कराए। इतना ही नहीं, इन छात्रों ने तो चयनित मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश शुल्क भी जमा कर दिया है। यानी अगर समय रहते यह फर्जीवाड़ा पकड़ में न आता, तो ये छात्र असली हकदारों की सीट पर कब्जा कर लेते।
जांच का जिम्मा किसके पास?
जिलाधिकारी ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल एक विशेष जांच टीम बनाई है। इस टीम का नेतृत्व एसडीएम सदर तिमराज सिंह कर रहे हैं। उनके साथ दो-दो नायब तहसीलदारों को भी जोड़ा गया है ताकि जांच में कोई चूक न हो।
एडीएम अनिल कुमार ने साफ कहा है कि “शासन की तरफ से हर प्रमाण पत्र अब ऑनलाइन जारी होते हैं और उनका ऑनलाइन सत्यापन भी तुरंत संभव है। लेकिन समस्या यह है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित प्रमाण पत्र अभी पूरी तरह ऑनलाइन नहीं है। इसी वजह से जालसाजों ने इसका फायदा उठाया और नकली दस्तावेज़ तैयार कर दिए।”
क्यों किया गया फर्जीवाड़ा?
नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में कुछ खास श्रेणियों के लिए अलग कोटा निर्धारित होता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित कोटे के तहत चयन प्रक्रिया में उम्मीदवारों को अंक का लाभ मिलता है और उन्हें सीट मिलने की संभावना भी बढ़ जाती है।
इसी लाभ को पाने के लिए जालसाजों ने यह रास्ता अपनाया। यानी सीधी भाषा में कहा जाए तो असली मेहनत से नीट पास करने की बजाय, शॉर्टकट से मेडिकल सीट हथियाने का खेल खेला गया।
प्रशासन की सख्ती
प्रशासन ने साफ कर दिया है कि इस मामले में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। फर्जी प्रमाण पत्र बनाने और इस्तेमाल करने वाले सभी लोगों पर कठोर कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। प्राथमिकी दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और संबंधित गिरोह तक पहुंचने के लिए जांच को तेज कर दिया गया है।
डीएम कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, जैसे ही जांच पूरी होगी, रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी। शासन स्तर से भी इस तरह के फर्जीवाड़े को रोकने के लिए कदम उठाए जाएंगे ताकि आगे कोई भी ऐसा दुस्साहस न कर सके।
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