बांसडीह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) के प्रभारी डॉक्टर वेंकटेश्वर मौआर को एंटी करप्शन टीम ने बृहस्पतिवार को घूस लेते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया। एंटी करप्शन टीम ने इस घूसखोरी के मामले की गहराई जांच की और डॉक्टर को गिरफ्तार कर कोतवाली ले गई। यह मामला तब उजागर हुआ जब बांसडीह सीएचसी परिसर में स्थित अमृत फार्मेसी मेडिकल स्टोर के संचालक अजय तिवारी ने आरोप लगाया कि डॉक्टर वेंकटेश्वर मौआर ने स्टोर के संचालन के लिए तीन लेटर जारी करने के नाम पर तीन लाख रुपये की मांग की थी।
अजय तिवारी के अनुसार, उन्होंने पहले दो लेटर प्राप्त कर लिए थे, लेकिन जब तीसरे लेटर की मांग की गई, तो डॉक्टर ने 20 हजार रुपये की अलग से घुस की मांग की। जब अजय तिवारी ने इस रकम को देने से इनकार किया तो डॉक्टर ने तीसरा लेटर जारी करने में आनाकानी करनी शुरू कर दी। इस स्थिति से परेशान होकर अजय तिवारी ने एंटी करप्शन वाराणसी से संपर्क किया और मामले की शिकायत दर्ज करवाई।
इस शिकायत पर कार्रवाई करते हुए वाराणसी की एंटी करप्शन टीम ने मामले को गंभीरता से लिया। टीम ने योजना बनाई और यह तय किया कि अजय तिवारी को केमिकल युक्त 20 हजार रुपये डॉक्टर वेंकटेश्वर मौआर को देने के लिए भेजा जाएगा। इसके बाद, टीम ने बलिया जिले के बांसडीह क्षेत्र में पहुंचकर यह अभियान शुरू किया।
बांसडीह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के ओपीडी (आउटडोर पेशन्ट डिपार्टमेंट) में बैठकर डॉक्टर वेंकटेश्वर मौआर मरीज़ों का इलाज कर रहे थे। अजय तिवारी ने उनके पास पहुंचकर 20 हजार रुपये का घूस उन्हें दे दिया। जैसे ही यह राशि डॉक्टर के पास पहुंची, एंटी करप्शन टीम ने तुरंत कार्रवाई की और डॉक्टर को रंगे हाथ पकड़ लिया। इसके बाद, टीम ने घूस के पैसों को जब्त कर लिया और इसे एक साक्ष्य के रूप में दर्ज किया।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद बांसडीह सीएचसी परिसर में अफरा-तफरी मच गई। कर्मचारियों को जब इस गिरफ्तारी की जानकारी मिली, तो उनके बीच खलबली मच गई। डॉक्टर वेंकटेश्वर मौआर की गिरफ्तारी के बाद एंटी करप्शन टीम ने मौके पर ही गवाहों के सामने घूस के पैसे को धुलवाकर साक्ष्य लिया। यह कार्रवाई पूरी तरह से पारदर्शी थी और टीम ने कोई भी कदम उठाने से पहले सभी कानूनी प्रक्रिया को सही तरीके से पालन किया।
यह पहली बार नहीं था जब डॉक्टर वेंकटेश्वर मौआर पर घूस लेने का आरोप लगा था। इससे पहले भी उनके ऊपर घूस मांगने के आरोप लगे थे, लेकिन उस समय मामले को दबा दिया गया था और कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई थी। अब एक बार फिर से उनकी घूसखोरी की गतिविधियां उजागर हो गईं, जिससे यह साफ हो गया कि उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करने की जरूरत थी।